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अनु० ११]
शाङ्करभाष्यार्थ
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Rama-
मणि वृत्ते या वर्तेरंस्तथा त्वमपि प्रकार बर्ताव करें उसी प्रकार तुझे
भी वर्तात्र करना चाहिये । इसी वर्तथाः । अथाभ्याख्यातेपु,
प्रकार अभ्याख्यातोंके प्रति। अभ्याख्याता अम्युक्ता दोपेण
अभ्याख्यात-अभ्युक्त अर्थात् जिन
पर कोई संशययुक्त दोप आरोपित संदिह्यमानेन संयोजिताः केन- किया गया हो उनके प्रति जैसा
पहले 'ये तत्र' इत्यादिसे कहा गया चित्तेषु च यथोक्तं सर्वमुपन
है उसी सत्र व्यवहारका प्रयोग येये तत्रेत्यादि।
करना चाहिये। एप आदेशो विधिः । एप यह आदेश अर्थात् विधि है,
यह पुत्रादिको पिता आदिका उपदेश उपदेशः पुत्रादिभ्यः पित्रादी- है, यह वेदोपनिषद्-वेदका रहस्य नाम् । एपा वेदोपनिपढेदरहस्य
| यानी वेदार्थ है । यही अनुशासन
यानी ईश्वरका वाक्य है। अथवा वेदार्थ इत्येतत् । एतदेवानुशा- आदेशवाक्य विधि है-ऐसा पहले
कहा जा चुका है इसलिये यह सनमीश्वरवचनम् । आदेश
सभी प्रमाणभूत [ उपदेशकों ] का वाक्यस्य विधेरुतत्वात्सर्वेषां वा अनुशासन है । क्योंकि ऐसा
है इसलिये पहले जो कुछ प्रमाणभूतानामनुशासनमेतत् । कहा गया है वह सब इसी यस्मादेवं तस्मादेवं यथोक्तं सर्व प्रकार उपासनीय करने योग्य है ।
| इस प्रकार ही इसकी उपासना मुपासितव्यं कर्तव्यम् । एवमु करनी चाहिये-यह उपासनीय ही चैतदुपास्यमुपास्यमेव चैतन्नानुपा
है, अनुपास्य नहीं है-इस प्रकार
| यह पुनरुक्ति उपासनाके आदरके समित्यादरार्थं पुनर्वचनम् ॥४॥ लिये है ॥ ४ ॥