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________________ [२] उपोद्घात करते हुए भगवान्ने यह बतलाया है कि मोक्षरूप परमनिःश्रेयसकी प्राप्तिका एकमात्र हेतु ज्ञान ही है। इसके लिये कोई अन्य साधन नहीं है। मीमांसकोंके मतमें 'स्वर्ग' शब्दवाच्य निरतिशय प्रीति (प्रेय) ही मोक्ष है और उसकी प्राप्तिका साधन कर्म है। इस मतका आचार्यने अनेकों युक्तियोंसे खण्डन किया है और स्वर्ग तथा कर्म दोनोंहीकी अनित्यता सिद्ध की है । इस प्रकार आरम्भ करके फिर इस चल्लीमें बतलायी हुई भिन्न-भिन्न उपासनादिकी संक्षिप्त व्याख्या करते हुए इसके उपसंहारमें भी भगवान् भाष्यकारने कुछ विशद विचार किया है । एकादश अनुवाकमें शिष्यको वेदका स्वाध्याय करानेके अनन्तर आचार्य सत्यभापण एवं धर्माचरणादिका उपदेश करता है तथा समावर्तन संस्कारके लिये आदेश देते हुए उसे गृहस्थोचित कर्मोकी भी शिक्षा देता है । वहाँ यह बतलाया गया है कि देवकर्म, पितृकर्म तथा अतिथिपूजनमें कभी प्रमाद न होना चाहिये; दान और खाध्याय में भी कभी भूल न होनी चाहिये, सदाचारकी रक्षाके लिये गुरुजनोंके प्रति श्रद्धा रखते हुए उन्हींके आचरणोंका अनुकरण करना चाहिये-किन्तु वह अनुकरण केवल उनके सुकृतोंका हो, दुष्कृतोंका नहीं । इस प्रकार समस्त वल्लीमें उपासना एवं गृहस्थजनोचित सदाचारका ही निरूपण होनेके कारण किसीको यह आशंका न हो जाय कि ये ही मोक्षके प्रधान साधन हैं इसलिये आचार्य फिर मोक्षके साक्षात् साधनका निर्णय करनेके लिये पाँच विकल्प करते हैं--(१) क्या परम श्रेयकी प्राप्ति केवल कर्मसे हो सकती है ? (२) अथवा विद्याकी अपेक्षायुक्त कर्मसे (३) किंवा कर्म और ज्ञानके समुच्चयसे (४) या कर्मकी अपेक्षावाले ज्ञानसे (५) अथवा केवल ज्ञानसे ? इनमेंसे अन्य सब पक्षोंको सदोष सिद्ध करते हुए आचार्यने यही निश्चय किया है कि केवल ज्ञान ही मोक्षका साक्षात् साधन है । इस प्रकार शीक्षावल्लीमें संहितादिविषयक उपासनाओंका निरूपण कर फिर ब्रह्मानन्दवल्लीमें ब्रह्मविद्याका वर्णन किया गया है। इसका पहला
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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