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निवेदन
कृष्णयजुर्वेदीय तैत्तिरीयारण्यकके प्रपाठक ७, ८ और ९ का नाम तैत्तिरीयोपनिषद् है । इनमें सप्तम प्रपाठक, जिसे तैत्तिरीयोपनिषद्की शीक्षावल्ली कहते हैं, सांहिती उपनिषद् कही जाती है और अष्टम तथा नवम प्रपाठक, जो इस उपनिषद्की ब्रह्मानन्दवल्ली और भृगुवल्ली हैं, वारुणी उपनिषद् कहलाती हैं। इनके आगे जो दशम प्रपाठक है उसे नारायणोपनिषद् कहते हैं, वह याज्ञिकी उपनिषद् है । इनमें महत्त्वकी दृष्टिसे वारुणी उपनिषद् प्रधान है; उसमें विशुद्ध ब्रह्मविद्याका ही निरूपणं किया गया है । किन्तु उसकी उपलब्धिके लिये चित्तकी एकाग्रता एवं गुरुकृपाकी आवश्यकता है । इसके लिये शीक्षावल्लीमें कई प्रकारकी उपासना तथा शिष्य एवं आचार्यसम्बन्धी शिष्टाचारका निरूपण किया गया है । अतः औपनिपद सिद्धान्तको हृदयंगम करनेके लिये पहले शीक्षावल्ल्युक्त उपासनादिका ही आश्रय लेना चाहिये । इसके आगे ब्रह्मानन्दबल्ली तथा भृगुवल्लीमें जिस ब्रह्मविधाका निरूपण है उसके सम्प्रदायप्रवर्त्तक वरुण हैं; इसलिये वे दोनों वल्लियाँ वारुणी विद्या अथवा वारुणी उपनिषद् कहलाती हैं ।
इस उपनिषद्पर भगवान् शङ्कराचार्यने जो भाष्य लिखा है वह वहुत ही विचारपूर्ण और युक्तियुक्त है । उसके आरम्भ में ग्रन्थका