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________________ तैत्तिरीयोपनिषद् [वल्ली १ चक्षिको वा ख्यानादिष्टस्य ! 'व्याख्यास्यामः' यह पद 'वि' और 'आङ्' उपसर्गपूर्वक 'चक्षि व्यापूर्वस्य व्यक्तवाकर्मण एत- धातुके स्थानमें वैकल्पिक 'ख्या आदेश करनेसे निप्पन्न होता है। द्रूपम् । इसका अर्थ स्पष्ट उच्चारण है। तत्र वर्णोऽकारादिः, स्वर तहाँ अकारादि वर्ण, उदात्तादि उदात्तादिः, मात्रा हखाद्याः, वलं सर, हला | उच्चारणमें ] प्रयत्नविशेषरूप वल, प्रयत्नविशेषः, साम वर्णानांमध्य-वोंको मध्यम वृत्तिसे उच्चारण मवृत्त्योच्चारणं समता, सन्तानः करनारूप साम अर्थात् समता तथा सन्ततिः संहितेत्यर्थः । एप हि सन्तान-सन्तति अर्थात् संहिता यही शिक्षणीय विषय है। शिक्षा शिक्षितव्योर्थः। शिक्षा यसिन्न- जिस अध्यायमें है उस इस शीक्षाध्याये सोऽयं शीक्षाध्याय इत्येव- अध्यायका इस प्रकार कथन यानी प्रकाशन कर दिया गया । यहाँ मुक्त उदितः । उक्त इत्युपसं 'उक्तः' पद उपसंहारके लिये हारार्थः ॥१॥ है॥ १॥ इति शीक्षावल्ल्यां द्वितीयोऽनुवाकः ॥२॥ JAD Cmatha
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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