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________________ [ चली ३ अनमय आदिके क्रमले आनन्द अन्नमयादिक्रमेणानन्दमचमात्मानमुपसंक्रम्यैतत्साम गाय मय आत्माके प्रति संक्रमण कर वह नास्ते । यह सामगान करता रहता है । २३० तैत्तिरीयोपनिषद् 'सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म' इस चाके अर्थकी, इसकी विवरणभूता सोऽश्नुते व्याख्यातो विस्तब्रह्मानन्दवल्लीके द्वारा विस्तारपूर्वक सर्वान्कामानिति रेण तद्विवरणभूत - | व्याख्या कर दी गयी थी । किन्तु मीमांस्यते यानन्दवथा || उसके फलका निरूपण करनेवाले "सोऽनुते सर्वान्कामान् | " वह सर्वज्ञ ब्रह्मखरूपसे एक साथ ब्रह्मणा विपश्चिता" ( तै० उ० | इस वचनके अर्थका विस्तारपूर्वक सम्पूर्ण भोगोंको प्राप्त कर लेता है" २ । १ ) इति तस्य फलवचन वर्णन नहीं किया गया था । वे स्यार्थविस्तारो नोक्तः । के ते विषयोंसे सम्बन्ध है ? और किस भोग क्या हैं ? उनका किन किंविपया वा सर्वे कामाः कथं | प्रकार वह उन्हें ब्रह्मरूपसे एक साथ ही प्राप्त कर लेता है ? -यह सब बतलाना है, अतः अत्र इसीका विचार आरम्भ किया जाता है या ब्रह्मणा सह समश्नुत इत्येतद्वक्तव्यमितीदमिदानीमारम्यते - सत्यं ज्ञानमित्यस्या ऋचोsa तत्र पितापुत्राख्यायिकायां पूर्वविद्याशेपभूतायां तपो ब्रह्मविद्यासाधनमुक्तम् । प्राणादेरा तहाँ पूर्वोक्त विद्याकी शेपभूत पितापुत्र सम्वन्धिनी आख्यायिकामें तप ब्रह्मविद्याकी प्राप्तिका साधन बतलाया गया है; तथा भाकाशपर्यन्त काशान्तस्य च कार्यस्यान्नान्ना - अन्नादरूपसे विनियोग एवं ब्रह्मप्राणादि कार्यवर्गका अन्न और दवेन विनियोगश्रोक्तः, ब्रह्मसम्बन्धिनी उपासनाओं का प्रतिपादन किया गया विषयोपासनानि च । ये च सर्वे | आकाशादि कार्यभेदसे सम्बन्धित है । इसी प्रकार
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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