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________________ ० ८ ] अनु० शाङ्करभाष्यार्थ नः विज्ञानमात्रत्वात्संक्रमण सिद्धान्ती नहीं, क्योंकि पुरुष संगमनम् स्य । न जलूकादि- का संक्रमण तो केवल विज्ञानमात्र है । यहाँ जोंक आदिके संक्रमणके वत्संक्रमणमिहोप ननु मुख्यमेव संक्रमणं श्रूयत अन्यथा वा । समान पुरुषके संक्रमणका उपदेश दिव्यते, किं तहिं १ विज्ञानमात्रं | नहीं किया जाता । तो कैसा ? इस संक्रमण - श्रुतिका अर्थ तो केवल विज्ञानमात्र है | * संक्रमणश्रुतेरर्थः । पूर्व ० - 'उपसंक्रामति' इस पदसे यहाँ मुख्य संक्रमण (समीप जाना ) हो अभिप्रेत हो तो ? उपसंक्रामतीति चेत् ? नः अन्नमयेऽदर्शनात् । न सिद्धान्ती- नहीं, क्योंकि अन्नमय में मुख्य संक्रमण देखा नहीं जातायन्नमयमुपसंक्रामतो बाह्यादरसा-अन्नमयको उपसंक्रमण करनेवालेका छोकाअल्कावत्संक्रमणं दृश्यते । जांकके समान इस बाह्य जगत् से अथवा किसी और प्रकारसे संक्रमण नहीं देखा जाता । मनोमयस्य वहिर्निर्गतस्य १९३ par विज्ञानमयस्य वा पुनः प्रत्या वृत्यात्मसंक्रमणमिति चेत् १ नः स्वात्मनि क्रियाविरोधा पूर्व० - चाहर [निकलकर विषयोंमें ] गये हुए मनोमय अथवा विज्ञानमय कोशोंका तो वहाँ से पुनः लौटने पर अपनो ओर होना सङ्क्रमण हो ही सकता है ? सिद्धान्ती- नहीं, क्योंकि इससे अपनेमें ही अपनी क्रिया होनादन्योऽन्नमयमन्यमुपसंक्रामतीति | यह विरोध उपस्थित होता है । अन्नमयसे भिन्न पुरुष अपनेसे भिन्न प्रकृत्य मनोमयो विज्ञानमयो वा | अन्नमयको प्राप्त होता है-इस प्रकार * अर्थात् यहाँ 'संक्रमण' शब्दका अर्थ 'जाना' या 'पहुँचना' नहीं बल्कि 'जानना' है । २५
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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