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________________ १७२ तैत्तिरीयोपनिषद् निरीगोपनि [वल्ली २ वह अकामहत श्रोत्रियको भी प्राप्त है। कर्मदेव देवताओंके .जो सौ आनन्द हैं वही देवताओंका एक आनन्द है और वह अकामहत श्रोत्रियको भी प्राप्त है । देवताओंके जो सौ आनन्द हैं वही इन्द्रका एक आनन्द है ॥ ३ ॥ तथा वह अकामहत श्रोत्रियको भी प्राप्त है । इन्द्रके जो सौ आनन्द हैं वही बृहस्पतिका एक आनन्द है और वह अकामहत श्रोत्रियको भी प्राप्त है । वृहस्पतिके जो सौ आनन्द हैं वही प्रजापतिका एक आनन्द है और वह अकामहत श्रोत्रियको भी प्राप्त है। प्रजापतिके जो सौ आनन्द हैं वही ब्रह्माका एक आनन्द है और वह अकामहत श्रोत्रियको भी प्राप्त है ।। २-१ ॥ भीपा भयेनासाद्वातः पवते।। इसकी भीति अर्थात् भयसे वायु __भीपोदेति सर्यः चलता है, इसीकी भीतिसे सूर्य नमानुशासनम् उदित होता है और इसके भयसे भीपासादग्निश्चेन्द्रश्च ही अग्नि, इन्द्र तथा पाँचवाँ मृत्यु मृत्युर्धावति पश्चम इति । वाता- दौड़ता है। वायु आदि देवगण दयो हि महार्हाः स्वयमीश्वरा परमपूजनीय और स्वयं समर्थ होने पर भी अत्यन्त श्रमसाध्य चलने सन्तः पवनादिकार्येष्वायासबहु- आदिके कार्यों नियमानुसार प्रवृत्त लेषु नियताः प्रवर्तन्ते । तय हो रहे हैं। यह बात उनका कोई | शासक होने पर ही सम्भव है। प्रशास्तरि सति; यसान्नियमेन क्योंकि उनकी नियमसे प्रवृत्ति होती तेषां प्रवर्तनम् । तसादस्ति भर- है इसलिये उनके भयका कारण और कारणं तेषां प्रशास्त ब्रह्म । उनपर शासन करनेवाला ब्रह्म है। | जिस प्रकार राजाके भयसे सेवक यतस्ते भृत्या इव राज्ञोऽस्मा- लोग अपने-अपने कामोंमें लगे रहते ब्राह्मणो भरोत माना है उसी प्रकार वे इस ब्रह्मके भयसे । प्रवृत्त होते हैं, वह उनके भयका भयंकारणमानन्दं ब्रह्म। . कारण ब्रह्म आनन्दखरूप है। : १. पूर्वोक्त यायु आदिके क्रमसे गणना किये जानेपर पाँचवाँ होनेके कारण मृत्युको पाँचवाँ कहा है।
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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