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________________ अनु०८] शाइरभाल्यार्थ १७१ नामानन्दः । श्रोत्रियस्य चाकामहतस्य । ते ये शतं देवानामानन्दाः । स एक इन्द्रस्यानन्दः ॥३॥ श्रोत्रियस्य चाकामहतस्य । ते ये शतमिन्द्रस्यानन्दाः । स एको बृहस्पतेरानन्दः । श्रोत्रियस्य चाकामहतस्य । ते ये शतं वृहस्पतेरानन्दाः । स एकः प्रजापतेरानन्दः । श्रोत्रियस्य चाकामहतस्य । ते ये शतं प्रजापतेरानन्दाः । स एको ब्रह्मण आनन्दः । श्रोत्रियस्य चाकामहतस्य ॥ ४॥ इसके भयसे वायु चलता है, इसीके भयसे सूर्य उदय होता है तथा इसीके भयसे अग्नि, इन्द्र और पाँचवाँ मृत्यु दौड़ता है। अब यह [इस ब्रह्मके ] आनन्दकी मीमांसा है-साधु खभाववाला नवयुवक, वेद पढ़ा हुआ, अत्यन्त आशावान् [ कभी निराश न होनेवाला ] तथा अत्यन्त दृढ़ और बलिष्ट हो एवं उसीकी यह धन-धान्यसे पूर्ण सम्पूर्ण पृथिवी भी हो । [ उसका जो आनन्द है ] वह एक मानुष आनन्द है; ऐसे जो सौ मानुष आनन्द हैं ॥१॥ वही मनुष्य-गन्धर्वोका एक आनन्द है तथा वह अकामहत (जो कामनासे पीड़ित नहीं है उस) श्रोत्रियको भी प्राप्त है । मनुष्य-गन्धर्वोके जो सौ आनन्द हैं वही देवगन्धर्वका एक आनन्द है और वह अकामहत श्रोत्रियको भी प्राप्त है । देवगन्धोंके जो सौ आनन्द हैं वही नित्यलोकमें रहनेवाले पितृगणका एक आनन्द है और वह अकामहत श्रोत्रियको भी प्राप्त है। चिरलोकनिवासी पितृगणके जो सौ आनन्द हैं वही आजानज देवताओंका एक आनन्द है ॥२॥ और वह अकामहत श्रोत्रियोंको भी प्राप्त है । आजानज देवताओंके जो सौ आनन्द हैं वहीं कर्मदेव देवताओंका, जो कि [ अग्निहोत्रादि ] कर्म करके देवत्वको प्राप्त होते हैं, एक आनन्द है और
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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