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________________ १५० तैत्तिरीयोपनिषद् [वल्ली २ सृज्यसावजगद्रचनादिविषयामा- कि आत्माने रचे जानेवाले जगत्की लोचनामकरोदात्मेत्यर्थः। रचनाआदिके विपयमें आलोचनाकी। स एवमालोच्य तपस्तप्त्वा इस प्रकार आलोचना अर्थात् तप प्राणिकर्मादिनिमित्तानुरूपमिदं करके उसने प्राणियोंके कर्मादि निमित्तोंके अनुरूप इस सम्पूर्ण सर्व जगद्देशतः कालतो नाम्ना जगतको रचा, जो देश, काल, रूपेण च यथानुभवं सर्वैः नाम और रूपसे यथानुभव सारी प्राणिमिः सर्वावस्थैरतुभ्यमानम अवस्थाओंमें स्थित सभी प्राणियोंद्वारा अनुभव किया जाता है। यह जो सृजत सृष्टवान् । यदिदं किं च कुछ है अर्थात् सामान्यरूपसे यह यत्कि चेदमविशिष्टम् । तदिदं जो कुछ जगत् है इसे रचकर उसने जगत्सृष्टा किमकरोदित्युच्यते- क्या किया, सो वतलाते हैं वह उस तदेव सृष्टं जगदनुप्राविशदिति। हो गया । (रचे हुए जगत्में ही अनुप्रविष्ट तत्रैतचिन्त्यं कथमनुप्रायिश- अब यहाँ यह विचारना है कि उसने किस प्रकार अनुप्रवेश किया? तस्य जगदनु- दिति । किं क या जो स्रष्टा था, क्या उसने खवरूपसे यः, प्रवेशः स्रष्टा स तेनैवात्म- ही अनुप्रवेश किया अथवा किसी नानुप्राविशदुतान्येनेति, किं ता (और रूपसे ? इनमें कौन-सा पक्ष | समीचीन है ? श्रुतिमें [ 'सृष्टवा' इस वद्युक्तम् ? क्त्वाप्रत्ययश्रवणायः क्रियामें ] 'क्वा' प्रत्यय होनेसे तो यही ठीक जान पड़ता है कि जोस्रष्टा स्रष्टा स एवानुप्राविशदिति । था उसीने पीछे प्रवेश भी किया ।* * 'पत्वा' प्रत्यय पूर्वकालिक क्रियामें हुआ करता है। हिन्दीमें इसी अर्थमें 'कर' या 'के' प्रत्यय होता है। जैसे-'रामने श्यामको बुलाकर [ या बुलाके ] धमकाया । इसमें यह नियम होता है कि पूर्वकालिक क्रिया और मुख्य कियाका कर्ता एक ही होता है। जैसे कि उपर्युक्त वाक्यमें पूर्वकालिक क्रिया 'बुलाकर' तथा मुख्य क्रिया 'धमकाया' इन दोनोंका कर्ता 'राम' ही है ।
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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