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अनु० ३]
शाङ्करभाष्यार्थ
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मात्मायुर्जीवनहेतुत्वादिति ते और उनके जीवनका कारण होनेसे सर्वमेवायुरसिल्लोके यन्तिः नाप- उनकी आयु हूँ' इस प्रकार ब्रह्मरूपसे
उपासना करते हैं वे इस लोकमें मृत्युना म्रियन्ते प्राक्प्राप्तादायुष पूर्ण आयुको प्राप्त होते हैं । अर्थात् इत्यर्थः । शतं वाणीति तु युक्तं प्रारब्धवश प्राप्त हुई आयुसे पूर्व "सर्वमायुरेति" (छा० उ० २।
अपमृत्युसे नहीं मरते । “पूर्ण आयु
को प्राप्त होता है" ऐसो श्रुति-प्रसिद्धि ११-२०, ४ । ११-१३) इलि हानेके कारण यहाँ [ 'सर्वायु' श्रुतिप्रसिद्धः।
शब्दसे] सौ वर्ष समझने चाहिये । किं कारणं प्राणो हि भूता
। प्राणको सर्वायु समझनेका ]
क्या कारण है ? क्योंकि प्राण ही नामायुस्तसात्सर्वायुपमुच्यत इति।। प्राणियोंकी आयु है इसलिये वह
'सर्वायुप' कहा जाता है। जो यो यद्गुणकं ब्रह्मोपास्ते स तद्- | व्यक्ति जैसे गुणवाले ब्रह्मकी उपासना
करता है वह उसी प्रकारके गुणका गुणभाग्भवतीति विद्याफलप्राले-भागी होता है-इस प्रकार विद्याके
फलकी प्राप्तिके इस हेतुको प्रदर्शित त्वर्थ पुनर्वचनं प्राणो हीत्यादि।। | करने के लिये 'प्राणो हि भूताना
मायुः' इत्यादि वाक्यकी पुनरुक्ति की तस्स . पूर्वस्यान्नमयस्यैप एव गयी है। यही उस पूर्वकथित
अन्नमय कोशका शारीर---अन्नमय शरीरेऽन्नमये भवः शारीर शरीरमें रहनेवाला आत्मा है । कौन?
जो कि यह प्राणमय है। -आत्मा । क य एप प्राणमयः।
तसाद्वा एतसादित्युक्तार्थ- 'तस्माद्वा एतस्मात्' इत्यादि शेप मनोमयकोश- मन्यत् । अन्यो- पदोंका अर्थ पहले कह चुके हैं।
दूसरा अन्तर-आत्मा मनोमय है।
| संकल्प-विकल्पात्मक अन्तःकरणका मयः। मन इति संकल्पाद्यात्म- नाम मन है; जो तद्रूप हो उसे कमन्त करणं तन्मयो मनोमयो मनोमय कहते हैं; जैसे [ अन्नरूप
निर्वचन