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________________ अनु० ३] शाङ्करभाष्यार्थ १२१ मात्मायुर्जीवनहेतुत्वादिति ते और उनके जीवनका कारण होनेसे सर्वमेवायुरसिल्लोके यन्तिः नाप- उनकी आयु हूँ' इस प्रकार ब्रह्मरूपसे उपासना करते हैं वे इस लोकमें मृत्युना म्रियन्ते प्राक्प्राप्तादायुष पूर्ण आयुको प्राप्त होते हैं । अर्थात् इत्यर्थः । शतं वाणीति तु युक्तं प्रारब्धवश प्राप्त हुई आयुसे पूर्व "सर्वमायुरेति" (छा० उ० २। अपमृत्युसे नहीं मरते । “पूर्ण आयु को प्राप्त होता है" ऐसो श्रुति-प्रसिद्धि ११-२०, ४ । ११-१३) इलि हानेके कारण यहाँ [ 'सर्वायु' श्रुतिप्रसिद्धः। शब्दसे] सौ वर्ष समझने चाहिये । किं कारणं प्राणो हि भूता । प्राणको सर्वायु समझनेका ] क्या कारण है ? क्योंकि प्राण ही नामायुस्तसात्सर्वायुपमुच्यत इति।। प्राणियोंकी आयु है इसलिये वह 'सर्वायुप' कहा जाता है। जो यो यद्गुणकं ब्रह्मोपास्ते स तद्- | व्यक्ति जैसे गुणवाले ब्रह्मकी उपासना करता है वह उसी प्रकारके गुणका गुणभाग्भवतीति विद्याफलप्राले-भागी होता है-इस प्रकार विद्याके फलकी प्राप्तिके इस हेतुको प्रदर्शित त्वर्थ पुनर्वचनं प्राणो हीत्यादि।। | करने के लिये 'प्राणो हि भूताना मायुः' इत्यादि वाक्यकी पुनरुक्ति की तस्स . पूर्वस्यान्नमयस्यैप एव गयी है। यही उस पूर्वकथित अन्नमय कोशका शारीर---अन्नमय शरीरेऽन्नमये भवः शारीर शरीरमें रहनेवाला आत्मा है । कौन? जो कि यह प्राणमय है। -आत्मा । क य एप प्राणमयः। तसाद्वा एतसादित्युक्तार्थ- 'तस्माद्वा एतस्मात्' इत्यादि शेप मनोमयकोश- मन्यत् । अन्यो- पदोंका अर्थ पहले कह चुके हैं। दूसरा अन्तर-आत्मा मनोमय है। | संकल्प-विकल्पात्मक अन्तःकरणका मयः। मन इति संकल्पाद्यात्म- नाम मन है; जो तद्रूप हो उसे कमन्त करणं तन्मयो मनोमयो मनोमय कहते हैं; जैसे [ अन्नरूप निर्वचन
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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