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________________ १२० १२० तैत्तिरीयोपनिषद् [ बल्ली २ कारणेन नित्येनाविकृतेन सर्व- आकाशादिक कारण, नित्य, निर्विकार, सर्वगत, सत्य ज्ञान एवं गतेन सत्यज्ञानानन्तलक्षणेन' ', अनन्तरूप. पनकोशातीत सर्वात्माने पञ्चकोशातिगेन सर्वात्मनात्म- ' भी आत्मवान हैं। वही परमार्यतः वन्तः । स हि परमार्थत आत्मा ' सबका आन्मा है-यह बात भी । इस वाक्यके तात्पर्य कह ही दी सर्वेपामित्येतदप्यर्थादुक्तं भवति। गयी है। प्राणं देवाअनु प्राणन्तीत्युक्तं देवगण प्राणके पीछे प्राणनतत्करसादित्याह । प्राणां हि क्रिया करते हैं-ऐसा पहले कहा गया । ऐसा क्यों है ? सो बतलाते यसाभूताना माणनामायुजान है क्योंकि प्राण ही प्राणियोंका नम् । “यानद्धयसिशरीरे प्राणो आयु--जीवन है। "जबतक इस वसति तावदायु (को० उ० शरीरमें प्राण रहता है तभीतक ३ । २) इति श्रुत्यन्तरात । ' आयु है" इस एक अन्य श्रुतिसे भी । यही सिद्ध होता है । इसीलिये वह तस्मात्सर्वायुपम् । सर्वेपामायुः । 'सर्वायुप' है। सबकी आयुका नाम सर्वायुः सर्वायुरेव सर्वायुपमित्यु- 'सर्वायु' है, 'सर्वायु' ही 'सर्वायुप' च्यते । प्राणापगमे भरणप्रसिद्धः। कहा जाता है, क्योंकि प्राण-प्रयाणप्रसिद्धं हि लोके सर्वायुष्वं ।। के अनन्तर मृत्यु हो जाना प्रसिद्ध न ही है। प्राणका सर्वायु होना तो प्राणस्य । लोकमें प्रसिद्ध ही है। अतोऽसाद्वाह्यादसाधारणाद- अतः जो लोग इस बाह्य 'प्राणोपासन- नमयादात्मनोऽप- | असाधारण ( व्यावृत्तरूप ) अन्नमय • फलम् क्रम्यान्तः साधा कोशसे आत्मबुद्धिको हटाकर इसके रणं प्राणमयमात्मानं ब्रह्मोपासते | अन्तर्वर्ती और साधारण [ सम्पूर्ण इन्द्रियोंमें अनुगत ] प्राणमय कोशयेऽहमस्मि प्राणः सर्वभूताना- | को 'मैं प्राण सम्पूर्ण भूतोंका आत्मा
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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