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_श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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जाइं चत्तारिऽभोज्जाइ
इसिणा-हारमाईणि। ताइ तु विवज्जतो
सजम अणुपालए।।
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पिड सेज्ज च वत्थं च
चउत्थ पायमेव य। अकप्पिय न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पिय ।।
(दस ६ ४६, ४७)
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ऋषि के लिए जो आहार, शय्या, वस्त्र ओर पात्र अकल्पनीय हैं, उनका वर्जन करता हुआ मुनि सयम का पालन करे। मुनि अकल्पनीय पिण्ड, शय्या-वसति, वस्त्र और पात्र को ग्रहण करने की इच्छा न करे किन्तु कल्पनीय ग्रहण करे।
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