________________
-
_ श्रमण सूक्त
७५
॥
सिक्खिऊण भिक्खेसणसोहिं
संजयाण बुद्धाण सगासे। तत्य भिक्खू सुप्पणिहिंदिए तिब्बलज्ज गुणवं विहरेज्जासि।।
(दस ५ (२) : ५०)
-
संयत और बुद्ध श्रमणों के समीप भिषणा की विशुद्धि सीखकर उसमे सुप्रणिहित इन्द्रिय वाला भिक्षु उत्कृष्ट संयम और गुण से सपन्न होकर विचरे।
-
-
७५