________________
श्रमण सूक्त
(8
_ श्रमण सूक्त ।
उप्पल पउम वा वि
कुमुय वा मगदतिय। अन्न वा पुप्फ सच्चित्त
त च सम्मद्दिया दए।।
त भवे भत्तपाण तु
सजयाण अकप्पिय। देतिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस
(दस ५(२). १६, १७)
-
कोई उत्पल, पदम्, कुमुद, मालती या अन्य किसी सचित्त पुष्प को कुचल कर भिक्षा दे, वह भक्त-पान सयति के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए मुनि देती हुई स्त्री को प्रतिषेध करे-इस प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता।
_
N