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श्रमण सूक्त
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उप्पल पउम वा वि
कुमुय वा मगदतिय। अन्न वा पुप्फ सच्चित्त
त च सलुचिया दए।
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त भवे भत्तपाण तु
सजयाण अकप्पिय। देतिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस।।
(दस ५ (२) १४, १५)
कोई उत्पल, पद्म, कुमुद, मालती या अन्य किसी सचित्त पुष का छेदन कर भिक्षा दे वह भक्त-पान सयति के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए मुनि देती हुई स्त्री को प्रतिषेध करे-इस प्रकार का आहार में नहीं ले सकता।