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श्रमण सूक्त
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सइ काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारिय।
अलाभो त्ति न सोएज्जा तवो त्ति अहियासए ।। (दस ५ (२) ६)
भिक्षु समय होने पर भिक्षा के लिए जाए, पुरुषकार (श्रम) करे, भिक्षा न मिलने पर शोक न करे, सहज तप ही सहीयो मान भूख को सहन करे ।
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