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श्रमण सूक्त
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तहेवुच्चावया पाणा
भत्तट्ठाए समागया ।
त-उज्जयं न गच्छेज्जा जयमेव परक्कमे ||
( दस. ५ (२) : ७)
इसी प्रकार जहां नाना प्रकार के प्राणी भोजन के निमित्त एकत्रित हो, उनके सम्मुख न जाए। उन्हें त्रास न देता हुआ यतनापूर्वक जाए।
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