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श्रमण सूक्त
५६
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अकाले चरसि भिक्खू
कालं न पडिलेहसि। अप्पाणं च किलामेसि सन्निवेसं च गरिहसि।।
(दस ५ (२):५)
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भिक्षो तम अकाल में जाते हो, काल की प्रतिलेखना नहीं करते, इसलिए तुम अपने आपको क्लान्त (खिन्न) करते हो और सन्निवेश (ग्राम) की निन्दा करते हो।
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