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श्रमण सूत
श्रमण सूक्त
(४४
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पुरेकम्मेण हत्थेण
दबीए भायणेण वा। देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस।।
(दस ५ (१) ३२)
पुराकर्मकृत हाथ, कडछी और बर्तन से भिक्षा देती हुई स्त्री को मुनि प्रतिषेध करे--इस प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता।
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