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श्रमण सूक्त
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४५ )
एव उदओल्ले ससिणिद्धे
ससरक्खे मट्टिया ऊसे। हरियाले हिगुलए
मोसिला अजणे लोणे||
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गेरुय वणिय सेडिय
सोरट्ठिय पिट्ठ कुक्कुसकए य। उक्कट्ठमसंसट्टे ससट्टे चेव बोधव्वे ।।
(दस ५ (१) ३३, ३४)
इसी प्रकार जल से आर्द्र, सस्निग्ध, सचित्त रज-कण, मृत्तिका, क्षार, हरिताल, हिंगुल, मैनशिल, अञ्जन, नमक, गैरिक, वर्णिका, श्वेतिका, सौराष्ट्रिका, तत्काल पीसे हुए आटे या कच्चे चावलो के आटे, अनाज के भूसे या छिलके और फल के सूक्ष्म खण्ड से सने हुए हाथ, कड़छी और वर्तन से भिक्षा देती हुई स्त्री को मुनि प्रतिषेध करे---इस प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता तथा संसृष्ट और अससृष्ट को जानना चाहिए।
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