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_श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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अह अन्नया कयाई
पासायालोयणे ठिओ। वज्झमडणसोभाग
वज्झ पासइ वज्झग।। तं पासिऊण सविम्गो
समुद्दपालो इणमब्बी। अहोसुमाण कम्माण निज्जाणं पावर्ग इमं।।
(उत्त. २१.८,६)
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समुद्रपाल कभी एक बार प्रासाद के झरोखे मे बैठा हुआ था। उसने वध्य-जनोचित मण्डनों से शोभित वध्य को नगर से वाहर ले जाते हुए देखा।
उसे देख वैराग्य में भीगा हुआ समुद्रपाल यों बोला-"अहो। यह अशुभ कर्मों का दुखद निर्याण-अवसान है।
Ramananews
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