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________________ श्रमण मुक्त श्रमण सूक्त २६२ - सबुद्धो सो तहि भगव पर सवेगमागओ। आपुच्छऽम्मापियरी पव्वए अणगारिय।। दुविह खवेऊण य पुण्णपाव निरगणे सव्वओ विप्पमुक्के। तरित्ता समुद्द व महाभवोघ समुद्दपाले अपुणागम गए।। (उत्त २१ १०, २४) - समुद्रपाल भगवान् परम वैराग्य को प्राप्त हुआ ओर सबुद्ध बन गया। उसने माता-पिता को पूछकर साधुत्व स्वीकार किया। समुद्रपाल सयम मे निश्चल और सर्वत मुक्त होकर पुण्य और पाप दोनो को क्षीण कर तथा विशाल ससार-प्रवाह को समुद्र की भाति तरकर अपुनरागम गति (मोक्ष) मे गया। । - - २६२ -
SR No.034105
Book TitleShraman Sukt
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2000
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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