________________
8
__ श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
२६५
कुइय रुइय गीय
हसिय थणियकदिय। बमचेररओ थीण सोयगिज्झ विवज्जए।।
(उत्त १६ ५)
-
ब्रह्मचर्य मे रत रहने वाला भिक्षु स्त्रियो के श्रोत्रग्राह्य, कूजन, रोदन, गीत, हास्य, गर्जन और क्रन्दन को न सुने-सुनने का यत्न न करे।
-
।
२६५