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श्रमण सूक्त
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अगपच्चगसठाण
चारुल्लवियपेहिय। बभचेररओ थीण चक्खुगिज्झ विवज्जए।।
(उत्त १६
४)
ब्रह्मचर्य मे रत रहने वाला भिक्षु स्त्रियो के चक्षु-ग्राह्य, अग-प्रत्यग, आकार, बोलने की मनहर मुद्रा और चितवन को न देखे-देखने का यत्न न करे।
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