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श्रमण सूक्त
(२५१
जहा सखम्मि पय
निहिय दुहओ वि विरायइ। एव बहुस्सुए भिक्खू धम्मो कित्ती तहा सुय ।।
(उत्त ११ १५)
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जिस प्रकार शङ्ख मे रखा हुआ दूध दोनो ओर (अपने और अपने आधार के गुणो) से सुशोभित होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भिक्षु मे धर्म, कीर्ति और श्रुत दोनो ओर (अपने और अपने आधार के गुणो) से सुशोभित होते हैं।
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