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_श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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(२५०
बुद्धे परिनिब्बुडे चरे
गामगए नगरे व संजए। संतिमग्ग च बूहए समय गोयम । मा पमायए।।
(उत्त १० . ३६)
तू गाव मे या नगर मे सयत, बुद्ध और उपशान्त होकर विचरण कर, शातिमार्ग को बढा। हे गौतम | तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
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