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_ श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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अकलेवरसेणिमुस्सिया
सिद्धिं गोयम ! लोय गच्छसि। खेमं च सिव अणुत्तरं समयं गोयम ! मा पमायए।।
(उत्त. १० : ३५)
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हे गौतम । तू क्षपक श्रेणी पर आरूढ होकर उस सिद्धिलोक को प्राप्त होगा, जो क्षेम, शिव और अनुत्तर है। इसलिए हे गौतम । तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
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