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श्रमण सूक्त
_श्रमण सूक्त (२४८
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तिण्णो हु सि अण्णवं मह
कि पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पार गमित्तए समय गोयम । मा पमायए।।
(उत्त १० - ३४)
तू महान समुद्र को तैर गया है, अब तीर के निकट पहुंचकर क्यो खडा है ? उसके पार जाने के लिए जल्दी कर। हे गौतम | तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
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