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_श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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(२४६ ।
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अवसोहिय कंटगापहं
ओइण्णो सि पह महालय। गच्छसि मग्ग विसोहिया समय गोयम | मा पमायए।।
(उत्त १०
३२)
काटो से भरे मार्ग को छोडकर तू विशाल पथ पर चला आया है। दृढनिश्चय के साथ उसी मार्ग पर चल। हे गौतम तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
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