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श्रमण सूक्त
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श्रमण सूक्त (२४५
न हु जिणे अज्ज दिस्सई
बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए। सपइ नेयाउए पहे समयं गोयमं । मा पमायए।।
(उत्त १०
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३१)
'आज जिन नहीं दीख रहे हैं, जो मार्गदर्शक हैं वे एक मत नहीं हैं अगली पीढियो को इस कठिनाई का अनुभव होगा, किन्तु अभी मेरी उपस्थिति मे तुझे पार ले जाने वाला पथ प्राप्त है, इसलिए हे गौतम | तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
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