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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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सुह वसामो जीवामो
जेसिं मो नत्थि किचण। मिहिलाए डज्झमाणीए न मे डज्झइ किचण।।
(उत्त ६
१४)
अमण सोचते हैं-"हम लोग, जिनके पास अपना कुछ भी नहीं है, सुखपूर्वक रहते और सुख से जीते हैं। मिथिला जल रही है उसमे मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है।'
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