________________
-
श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
-
-
(२३७
नारीसु नो पगिज्झेज्जा
इत्थीविप्पजहे अणगारे। धम्म च पेसल नच्चा तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाण।।
(उत्त ८ १६)
-
स्त्रियों को त्यागने वाला अनगार उनमें गृद्ध न बने। भिक्षु-धर्म को अति मनोज्ञ जानकर उसमे अपनी आत्मा को स्थापित करे।
%
A
D
RI