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श्रमण सूक्त
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जे लक्खण च सुविण च अगविज्जं च जे परंजति ।
न हु ते समणा वुच्वंति
एव आयरिएहि अक्खाय ।। (उत्त ८१३)
जो लक्षण - शास्त्र, स्वप्न शास्त्र और अङ्ग-विद्या का प्रयोग करते हैं, उन्हें साधु नहीं कहा जाता - ऐसा आचार्यों ने कहा है।
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