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श्रमण सूक्त
(२३४
सुद्धेसणाओ नच्चाणं
तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाण। जायाए घासमेसेज्जा रसगिद्धे न सिया भिक्खाए।।
(उत्त ८ -११)
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भिक्षु शुद्ध एषणाओ को जानकर उनमे अपनी आत्मा को स्थापित करे। यात्रा (संयम-निर्वाह) के लिए भोजन की एषणा करे। भिक्षा- रे रसो मे गृद्ध न हो।
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