________________
-
श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
२३३)
-
सव्व गथ कलहं च
विप्पजहे तहाविह भिक्खू। सव्वेसु कामजाएसु पासमाणो न लिप्पई ताई।।
(उत्त ८.४)
भिक्षु कर्मबन्ध की हेतुभूत सभी ग्रन्थियों और कलह का त्याग करे। कामभोगो के सब प्रकारों में दोष देखता हुआ वीतराग तुल्य मुनि उसमें लिप्त न बने।
%3