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श्रमण सूक्त
(२२८
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विविच्च कम्मुणो हेउ
कालकखी परिवए। माय पिडस्स पाणस्स कडं लक्षूण भक्खए।।
(उत्त ६ १४)
कर्म के हेतुओ का विवेचन (विश्लेषण या पृथक्करण) कर मुनि मृत्यु की प्रतीक्षा करता हुआ विचरे। सयम-निर्वाह के लिए आहार और पानी की जितनी मात्रा आवश्यक हो उतनी गृहस्थ के घर मे सहज निष्पन्न भोजन से प्राप्त कर आहार करे।
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