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श्रमण सूक्त
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(२२६
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सन्निहिं च न कुव्वेज्जा
लेवमायाए सजए। पक्खी पत्त समादाय निरवेक्खो परिव्वए।।
(उत्त ६ १५)
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सयमी मुनि पात्रगत लेप को छोडकर अन्य किसी प्रकार के आहार का सग्रह न करे। जैसे पक्षी अपने पखो को साथ लिए उड जाता है वैसे ही मुनि अपने पात्रो को साथ ले, निरपेक्ष हो, परिव्रजन करे।
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