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श्रमण सूक्त
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आयाण नरय दिस्स
नायएज्ज तणामवि। दोगुंछी अप्पणों पाए दिन्न भुजेज्ज भोयण।।
(उत्त ६
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७)
परिग्रह नरक है यह देखकर मुनि एक तिनके को भी अपना बनाकर न रखे। अहिंसक या करुणाशील मुनि अपने पात्र में गृहस्थ द्वारा प्रदत्त भोजन करे।
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