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श्रमण सूक्त
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अह कालमि सपत्ते
आघायाय समुस्सय ।
सकाममरणं मरई तिण्हमन्नयर मुणी ।।
(उत्त. ५ ३२)
वह मरणकाल प्राप्त होने पर संलेखना के द्वारा शरीर का त्याग करता है, भक्त-परिज्ञा, इङ्गिनी या प्रायोपगमन --- इन तीनों में से किसी एक को स्वीकार कर सकाम-मरण से मरता है।
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