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श्रमण सूक्त
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स पुज्जसत्ये सुविणीयससए मणोरुई चिट्ठइ कम्मसपया ।
तवोसमायारिसमाहिसवुडे
महज्जुई पचवयाइ पालिया । । (उत्त १४७ )
विनीत शिष्य पूज्य-शास्त्र होता है। उसके शास्त्रीय ज्ञान का बहुत सम्मान होता है। उसके सारे सशय मिट जाते हैं। वह गुरु के मन को भाता है। वह कर्म- सम्पदा ( दस विध सामाचारी) से सम्पन्न होकर रहता है। वह तप सामाचारी और समाधि से सवृत होता है। वह पाच महाव्रतो का पालन कर महान् तेजस्वी हो जाता है।
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