________________
श्रमण सूक्त
-
१६५)
-
पुज्जा जस्स पसीयन्ति
सबुद्धा पुव्वसथुया। पसन्ना लाभइस्सन्ति विउलं अद्विय सुय।।
(उत्त १ ४६)
विनयशील शिष्य पर तत्त्ववित् पूज्य आचार्य प्रसन्न होते हैं। अध्ययनकाल से पूर्व ही वे उसके विनय समाचरण से परिचित होते हैं। वे प्रसन्न होकर उसे मोक्ष के हेतुभूत विपुल श्रुतज्ञान का लाभ करवाते हैं।