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श्रमण सूक्त
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स देवगन्धव्वमणुस्सपूइए
चइत्तु देह मलपकपुव्वय। सिद्धे वा हवइ सासए देवे वा अप्परए महिड्ढिए।।
(उत्त १ ४८)
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देव, गन्धर्व और मनुष्यो से पूजित वह विनीत शिष्य मल और पक से बने हुए शरीर को त्यागकर या तो शाश्वत सिद्ध होता है या अल्पकर्म वाला महर्द्धिक देव होता है।
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