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_श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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अप्पपाणेऽप्पबीयमि
पडिच्छन्नमि सवुडे। समय सजए भुजे जय अपरिसाडय।।
(उत्त १ ३५
सयमी मुनि प्राणी और बीज रहित, ऊपर से ढके हुए और पार्श्व मे भित्ति आदि से सवृत उपाश्रय मे अपने सहधर्मी मुनियो के साथ, भूमि पर न गिराता हुआ, यत्नपूर्वक आहार करे।
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