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श्रमण सूक्त
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सुकडे त्ति सुपक्के त्ति
सुच्छिन्ने सुहडे मडे। सुणिट्टिए सुलहे त्ति सावज्ज वज्जए मुणी।।
(उत्त १.३६)
बहुत अच्छा किया है (भोजन आदि), बहुत अच्छा पकाया है (घेवर आदि), बहुत अच्छा छेदा है (पत्ती का साग आदि). बहुत अच्छा हरण किया है (साग की कडवाहट आदि). बहुत अच्छा भरा है (चूरमे मे घी आदि), बहुत अच्छा रस निष्पन्न हुआ है (जलेबी आदि मे) बहुत इष्ट है-मुनि इन सावध वचनों का प्रयोग न करे।
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