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श्रमण सूक्त
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न या लभेज्जा निउण सहाय
गुणाहिय वा गुणओ सम वा । एक्को वि पावाइ विवज्जयतो विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो ।। (दस चू (२) १०)
यदि कदाचित् अपने से अधिक गुणी अथवा अपने समान गुण वाला निपुण साथी न मिले तो मुनि पाप कर्मो का वर्जन करता हुआ काम - भोगों में अनासक्त रह अकेला ही (संघस्थित) विहार करे |
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