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श्रमण सूक्त
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सवच्छरं चावि पर पमाणं
वीय च वास न तहि वसेज्जा। सुत्तस्स मग्गेण चरेज्ज भिक्खू सुत्तस्स अत्यो जह आणवेइ।।
(दस चू (२) ११)
जिस गाव में मुनि काल के उत्कृष्ट प्रमाण तक रह चुका हो (अर्थात् वर्याकाल में चातुर्मास और शेषकाल में एक मास रह चुका हो) वहा दो वर्ष (दो चातुर्मास और दो मारा) का अन्तर किए बिना न रहे। भिक्षु सूत्रोक्त मार्ग से चले सूत्र का अर्थ जिस प्रकार आज्ञा दे. वैसे चलें।
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