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श्रमण सूक्त
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न पडिन्नवेज्जा सयणासणाइ सेज्ज निसेज्ज तह भत्तपाण। गामे कुले वा नगरे व देसे ममत्तभाव न कहि चि कुज्जा ।। (दस चू (२) ८)
साधु विहार करते समय गृहस्थ को ऐसी प्रतिज्ञा न दिलाए कि वह शयन, आसन, उपाश्रय, स्वाध्याय - भूमि जब मै लौटकर आऊ तब मुझे ही देना। इसी प्रकार भक्त - पान मुझे ही देना - यह प्रतिज्ञा भी न कराए। गाव, कुल, नगर या देश मे कहीं भी ममत्व न करे ।
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