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श्रमण सूक्त
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अमज्जमंसासि अमच्छरीया
अभिक्खण निव्विगइं गओ य ।
अभिक्खण काउस्सग्गकारी
सज्झायजोगो पयओ हवेज्जा ।। (दस चू (२) ७)
साघु मद्य और मास का अमोजी, अमत्सरी, बार-बार विकृतियो को न खाने वाला, बार-बार कायोत्सर्ग करने वाला ओर स्वाध्याय के लिए विहित तपस्या मे प्रयत्नशील हो ।
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