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श्रमण सूक्त
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भुजित्तु भोगाइ पसज्झ चेयसा
तहाविह कट्ट असजम बहु। गइ च गच्छे अणभिज्झिय दुह । बोही य से नो सुलभा पुणो पुणो ।। |
(दस चू (१) १४) वह सयम से भ्रष्ट साधु आवेगपूर्ण चित्त से भोगो को भोगकर और तथाविध प्रचुर असयम का आसेवन कर अनिष्ट एव दुखपूर्ण गति मे जाता है ओर बार-बार जन्म-मरण करने पर भी उसे बोधि सुलभ नहीं होती।
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