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श्रमण सूक्त
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न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सई असासया भोगपिवास जतुणो । न चे सरीरेण इमेणवेस्सई
अविस्सई जीवियपज्जवेण मे ।। ( दस चू (१) १६)
यह मेरा दुख चिरकाल तक नहीं रहेगा। जीवो की भोग-पिपासा अशाश्वत है। यदि वह इस शरीर के होते हुए न मिटी तो मेरे जीवन की समाप्ति के समय तो वह अवश्य मिट ही जाएगी।
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